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गर न होते राहबर राह-ए-सदाक़त के हुसैन / ओम प्रकाश नदीम
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गर न होते राहबर राह-ए-सदाक़त के हुसैन
मर्तबा शायद शहादत का नहीं पाते हुसैन
पानी पानी आजतक है दोस्तो जू-ए-फ़रात
क्योंकि उसके पास रह कर भी रहे प्यासे हुसैन
इक हिसार-ए-क़ौमियत में क़ैद मत रक्खो ये नाम
फैलने दो ताकि दुनिया जान ले क्या थे हुसैन
खुद रहे प्यासे पिलाया दुश्मनों को अपना खून
दो क़दम ईसार से भी बढ़ गए आगे हुसैन
बुतपरस्ती को अगर माना' नहीं होता ’नदीम’
बुत बना कर रोज़ तेरे पाँव हम छूते हुसैन