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ग़मे-इश्क़ आज़ारे-जाँ हो गया / मेला राम 'वफ़ा'
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ग़मे-इश्क़ आज़ारे-जाँ हो गया
जो होना था आख़िर अयाँ हो गया
ज़बां से तो कुछ भी न कह पाए हम
निगाहों से सब कुछ अयाँ हो गया
ख़ुदा की बड़ी मेहरबानी हुई
कि मुझ पर वो बुत मेहरबाँ हो गया
यहां तक मिटा दिल से मरने का डर
कि जीना भी मुझ पर गिरां हो गया
'वफ़ा' को था बचपन से आज़ारे-इश्क़
तअज़्जुब है क्यों कर जवाँ हो गया।