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ग़म उठाने को भली है ज़िन्दगी / हरिराज सिंह 'नूर'

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ग़म उठाने को भली है ज़िन्दगी।
जिसमें ख़तरे वो गली है ज़िन्दगी।

मौत ने जब डर दिखाया अपना तो,
आगे-आगे हो चली है ज़िन्दगी।

आए तो आए ये कैसे होश में?
रौनक़े-दिल में ढली है ज़िन्दगी।

शोख़ियों से दूर कैसे हो सके?
नाज़ में, मेरी पली है ज़िन्दगी।

जब ज़रूरत आदमी को आ पड़ी,
लकड़ियो-सी तब जली है ज़िन्दगी।

‘नूर’ को भी अब भरोसा हो गया,
आपकी फूली-फली है ज़िन्दगी।