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"ग़म से कहीं नजात मिले चैन पाएं हम / दाग़ देहलवी" के अवतरणों में अंतर

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ग़म से कहीं नजात मिले चैन पाए हम
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जन्नत में जाए हम कि जहन्नुम में जाए हम
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मिल जाए तू कहीं न कहीं तुझ को पाए हम
  
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मुमकिन है ये कि वादे पे अपने वो आ भी जाए
मिल जाए तू कहीं न कहीं तुझ को पाए हम<br><br>
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मुश्किल ये है कि आप में उस वक्त आए हम
  
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नाराज़ हो ख़ुदा तो करें बन्दगी से ख़ुश
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माशूक़ रूठ जाए तो क्यों कर मनाए हम
  
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सर दोस्तों के काट कर रक्खे हैं सामने
माशूक़ रूठ जाए तो क्यों कर मनाए हम<br><br>
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ग़ैरों से पूछते हैं कसम किस की खाए हम
  
सर दोस्तों के काट कर रक्खे हैं सामने<br>
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सौंपा तुम्हें ख़ुदा को चले हम तो नामुराद
ग़ैरों से पूछते हैं कसम किस की खाए हम<br><br>
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कुछ पढ़ के बख्शना जो कभी याद आए हम
  
सौंपा तुम्हें ख़ुदा को चले हम तो नामुराद<br>
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ये जान तुम न लोगे अगर, आप जाएगी
कुछ पढ़ के बख्शना जो कभी याद आए हम<br><br>
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इस बेवफ़ा की ख़ैर कहां तक मनाए हम
  
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हम-साए जागते रहे नालों से रात भर
इस बेवफ़ा की ख़ैर कहां तक मनाए हम<br><br>
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सोए हुए नसीब को क्यों कर जगाए हम
  
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तू भूलने की चीज़ नहीं ख़ूब याद रख
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ऐ 'दाग़' किस तरह तुझे दिल से भुलाए हम
 
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02:13, 28 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण

ग़म से कहीं नजात मिले चैन पाए हम
दिल ख़ूँ में नहाए तो गंगा नहाए हम

जन्नत में जाए हम कि जहन्नुम में जाए हम
मिल जाए तू कहीं न कहीं तुझ को पाए हम

मुमकिन है ये कि वादे पे अपने वो आ भी जाए
मुश्किल ये है कि आप में उस वक्त आए हम

नाराज़ हो ख़ुदा तो करें बन्दगी से ख़ुश
माशूक़ रूठ जाए तो क्यों कर मनाए हम

सर दोस्तों के काट कर रक्खे हैं सामने
ग़ैरों से पूछते हैं कसम किस की खाए हम

सौंपा तुम्हें ख़ुदा को चले हम तो नामुराद
कुछ पढ़ के बख्शना जो कभी याद आए हम

ये जान तुम न लोगे अगर, आप जाएगी
इस बेवफ़ा की ख़ैर कहां तक मनाए हम

हम-साए जागते रहे नालों से रात भर
सोए हुए नसीब को क्यों कर जगाए हम

तू भूलने की चीज़ नहीं ख़ूब याद रख
ऐ 'दाग़' किस तरह तुझे दिल से भुलाए हम