भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
|रचनाकार=दाग़ देहलवी
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
ग़म से कहीं नजात मिले चैन पाए हम
दिल ख़ूँ में नहाए तो गंगा नहाए हम
ग़म से कहीं नजात मिले चैन पाए जन्नत में जाए हम<br>दिल ख़ूँ कि जहन्नुम में नहाए तो गंगा नहाए जाए हममिल जाए तू कहीं न कहीं तुझ को पाए हम<br><br>
जन्नत में मुमकिन है ये कि वादे पे अपने वो आ भी जाए हम मुश्किल ये है कि जहन्नुम आप में जाए हम<br>मिल जाए तू कहीं न कहीं तुझ को पाए उस वक्त आए हम<br><br>
मुमकिन है ये कि वादे पे अपने वो आ भी जाए<br>नाराज़ हो ख़ुदा तो करें बन्दगी से ख़ुशमुश्किल ये है कि आप में उस वक्त आए माशूक़ रूठ जाए तो क्यों कर मनाए हम<br><br>
नाराज़ हो ख़ुदा तो करें बन्दगी से ख़ुश<br>माशूक़ रूठ जाए तो क्यों सर दोस्तों के काट कर मनाए रक्खे हैं सामनेग़ैरों से पूछते हैं कसम किस की खाए हम<br><br>
सर दोस्तों के काट कर रक्खे हैं सामने<br>सौंपा तुम्हें ख़ुदा को चले हम तो नामुरादग़ैरों से पूछते हैं कसम किस की खाए कुछ पढ़ के बख्शना जो कभी याद आए हम<br><br>
सौंपा तुम्हें ख़ुदा को चले हम तो नामुराद<br>ये जान तुम न लोगे अगर, आप जाएगीकुछ पढ़ के बख्शना जो कभी याद आए इस बेवफ़ा की ख़ैर कहां तक मनाए हम<br><br>
ये जान तुम न लोगे अगर, आप जाएगी<br>हम-साए जागते रहे नालों से रात भरइस बेवफ़ा की ख़ैर कहां तक मनाए सोए हुए नसीब को क्यों कर जगाए हम<br><br>
हम-साए जागते रहे नालों से रात भर<br>सोए हुए नसीब को क्यों कर जगाए हम<br><br> तू भूलने की चीज़ नहीं ख़ूब याद रख<br>ऐ 'दाग़' किस तरह तुझे दिल से भुलाए हम<br><br/poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,171
edits