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ग़म / शिवदीन राम जोशी

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गम में गमगीन, गमें गम में,
                 गम में रम के, गम और रमायें।
कोउ पूछे कहाँ, हमसे बतियां,
                 हममे गम हैं, हम गम में समाये।
गम खा के रहे, गम खा के जिये,
                गम गीत सदा, गम के हम गाये।
गम देख खिले, अहा खूब मिले,
               शिवदीन गमों से, ना आंसू बहायें।।

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भोर भये, गम खा के रहे,
              और शाम की शाम, रहे गम खाये।
दिन बीत गये, गम-खा, गम-खा,
                गम खा हमनें, कई बरस गमाये।
जो भी मिला, गम दे के मिला,
               गम ले के भला, हम और सरायें।
गम खूब गिरे, गिरते-गिरते,
              शिवदीन गमों को, भला करी पायें।।

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गम गामता है, यह बडा गम है,
                गम्भीर बना, गम की बलिहारी।
गम मीठा सा, मीठा लगा, गम तो,
           गम खा के ये जिन्दगी, खूब गुजारी।
तलाश खुशी की, करी करते,
              गम और मिले, मोहे आगे अगारी।
शिवदीन गमों से, मोहब्बत है,
             फिर क्यो न रहे, गम में होशियरी।।

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गम ताजा है राजा न बासी बुरा,
             गम खाय के देखलो मानव जानो।
गम खा प्रहलाद मरा न जरा,
            घ्रुव खा के गया गम वो पहिचानो।
संत सदा गम खाय बने,
               वे धारे गरीब नवाज को बानो।
शिवदीन गमों से मिलो तो मिलो,
           गम सार सदा कोऊ मानो न मानो।।