भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"गाँव इतना ज़्यादा बदल जाएगा मैंने सोचा न था / ज्ञान प्रकाश विवेक" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
[[Category:ग़ज़ल]]
 
[[Category:ग़ज़ल]]
 
<poem>
 
<poem>
गाँव इतना ज़ियादा बदल जाएगा मैंने सोचा न था
+
गाँव इतना ज़ियादा बदल जाएगा मैंने सोचा न था
 
वो शहर से भी आगे निकल जाएगा मैंने सोचा न था
 
वो शहर से भी आगे निकल जाएगा मैंने सोचा न था
  
मरकरी बल्ब की रोशनी देखकर तेरे पण्डाल की
+
मरकरी बल्ब की रोशनी देखकर तेरे पण्डाल की
मेरे घर का अँधेरा मचल जाएगा मैंने सोचा न था
+
मेरे घर का अँधेरा मचल जाएगा मैंने सोचा न था
  
खोटे सिक्के तो कम रोशनी में दुकानों पे देता रहा
+
खोटे सिक्के तो कम रोशनी में दुकानों पे देता रहा
 
पर फटा नोट भी मेरा चल जाएगा मैंने सोचा न था
 
पर फटा नोट भी मेरा चल जाएगा मैंने सोचा न था
  

17:12, 7 दिसम्बर 2008 के समय का अवतरण

गाँव इतना ज़ियादा बदल जाएगा मैंने सोचा न था
वो शहर से भी आगे निकल जाएगा मैंने सोचा न था

मरकरी बल्ब की रोशनी देखकर तेरे पण्डाल की
मेरे घर का अँधेरा मचल जाएगा मैंने सोचा न था

खोटे सिक्के तो कम रोशनी में दुकानों पे देता रहा
पर फटा नोट भी मेरा चल जाएगा मैंने सोचा न था

ये तो मालूम था कि मेरे तन की दीवार झुक जाएगी
उम्र के साथ सब कुछ बदल जाएगा मैंने सोचा न था

इक खिलौना जो मिट्टी का लाया था मैं जाके बाज़ार से
वो भी बारिश के पानी में गल जाएगा मैंने सोचा न था.