भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"गाँव खेतों-क्यारियों में बोलता है / ऋषभ देव शर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: गाँव, खेतों-क्यारियों में बोलता है चीख में, सिसकारियों में बोलता ...)
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
 +
|संग्रह= तेवरी / ऋषभ देव शर्मा
 +
}}
 +
<Poem>
 
गाँव, खेतों-क्यारियों में बोलता है
 
गाँव, खेतों-क्यारियों में बोलता है
 
चीख में, सिसकारियों में बोलता है
 
चीख में, सिसकारियों में बोलता है
पंक्ति 14: पंक्ति 20:
 
आपका चेहरा रँगेगा खून मेरा
 
आपका चेहरा रँगेगा खून मेरा
 
आपकी पिचकारियों  में बोलता है
 
आपकी पिचकारियों  में बोलता है
 +
</poem>

00:36, 2 मई 2009 के समय का अवतरण

गाँव, खेतों-क्यारियों में बोलता है
चीख में, सिसकारियों में बोलता है

पड़ गईं कितनी दरारें, आज नक्शा
तीन-रंगी धारियों में बोलता है

आपका बाजार लुटना है जरूरी
मांस - ज़िंदा, लारियों में बोलता है


दूध मत छीनो, दिखाकर झुनझुना यूँ
पालना किलकारियों में बोलता है

आपका चेहरा रँगेगा खून मेरा
आपकी पिचकारियों में बोलता है