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गिर रहे खून के कतरे देखो / सांवर दइया
Kavita Kosh से
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गिर रहे खून के कतरे देखो।
वे कहते कुछ नहीं, अरे देखो!
आवाज क्या चीख तक बेअसर,
सियासत के लोग बहरे देखा!
कैसे कहें खुलकर अपनी बात,
जुबां पर लगे हैं पहरे देखो!
नया रंग पोत जो आये इधर,
इनके पुराने चेहरे देखो।
किसी की कोई थाह न मिल रही,
लोग हुए इस हद गहरे देखो।