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गीत उनके लिये / मोहन अम्बर

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बचपन से अब तक का संचित ज्ञान कहलवाता है मुझसे,
मुझको ज़हर पिलाने वालों मेरी उमर तुम्हंे मिल जाये,
मैं कैसी माटी हूँं इसका उत्तर पूछो नील गगन से,
प्यास दबाकर दिया जिसे जल बूँद नहीं मांगी उस घन से,
पौध लगाई जिस उपवन में फूल न तोड़ा उस उपवन से,
फिर भी आग लगाने वालों मेरी शेष चाहना सुन लो,
अधिक जलूंगा सोना दूंगा यह भी ख़बर तुम्हें मिल जाये।
मंजिल का हकदार नहीं हूँ फ़र्ज़ निभाने को चलता हूँ,
अश्रु तेल के बल पर थोड़ी रात बिताने को जलता हूँ,
याद न आती कोई गलती, क्यों? किसको? कैसे? खलता हूँ,
फिर भी धूल उड़ाने वालों लो मेरा आभार प्रदर्शन,
धुंध अँजे मेरे नयनों की सारी नज़र तुम्हें मिल जाये।
जीवन गाता हूँ गीतों में यह युग पर अहसान नहीें है,
पोथों पर हस्ताक्षर होंगे इतना ऊँचा ज्ञान नहीं है,
लेकिन इसका अर्थ न लेना मुझको सच का भान नहीं है,
देखो शूल बिछाने वालों मैं बदले ऐसे लेता हूँ,
जितनी डगर न मैं चल पाऊँ उतनी डगर तुम्हें मिल जाये।