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गीत तुम्हारा / कुमार रवींद्र

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गीत तुम्हारा
यह है झुलसी धरती का
सुनें भद्रजन

कुछ सूरज की तपन
और कुछ आँच हमारी भी सिरजी है
आग कोख में है सागर की
बूँद-बूँद कर हमने पी है

किस्सा
हरबुझी साँसों की परती का
सुनें भद्रजन

कथन किसी का
सुलग रहे सब धीमी-धीमी एक आँच में
हमें दिखीं कल लपटें उठती
जलसाघर के नए नाच में

ज़िक्र गीत में
बुझे दिये की बत्ती का
सुनें भद्रजन

लोग जला कर कल्पवृक्ष को
अंगारे चुन कर लाए हैं
जले-ढहे पूजाघर के ही
अब सबके घर में साये हैं

कहीं नहीं
एहसास किसी को ग़लती का
सुनें भद्रजन