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गीत 19 / चौथा अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

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तत्त्व ज्ञान के जानि केॅ अर्जुन, फेर मोह नै पैवेॅ
महामोह अज्ञान नशैतें तों सत् के अपनैवेॅ।

जैसे सूर्य निकलतें
जग के सब-टा तिमिर हरै छै,
ज्ञान के सूरज जीवन भर
कहियो नै अस्त करै छै
तत्त्व ज्ञान के जगतें जीवन के सब तिमिर नसावेॅ
तत्त्व ज्ञान के जानि केॅ अर्जुन, फेर मोह नै पैवेॅ

तत्त्व ज्ञान जगते सब प्राणी
आतम रूप लगै छैै
एक तत्त्वदर्शी के
माया-ठगनी भी न ठगै छै
महापुरुष सन तत्त्व ज्ञान के सहज बोध करि पैवेॅ
तत्त्व ज्ञान के जानि केॅ अर्जुन, फेर मोह नै पैवेॅ

हय आतमा अनन्त रूप छिक
सबमें वास करै छै
एकरा नै मानै से
ईश्वर के उपहास करै छै
तों कल्याण अपन जानोॅ जब तत्त्व ज्ञान अपनैवेॅ
तत्त्व ज्ञान के जानि केॅ अर्जुन, फेर मोह नै पैवेॅ