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गीत 1 / पाँचवाँ अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
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अर्जुन उवाच-
अर्जुन कहलन सखा कृष्ण तों एक टा बात बतावोॅ
कर्मयोग अरु कर्म त्याग के फेरू से समझावोॅ।
पहिनें तोहें हे मधुसूदन
कर्म त्याग बतलैलेॅ
फेरो तोहें कर्मयोग के
भी मतलब समझैलेॅ
ई दोनों में कोन श्रेष्ठ छै, भली-भाँति समझावोॅ
केकरा से कल्याण होत हमरोॅ, केशव बतलावोॅ।
श्री भगवान उवाच-
कहलन कृष्ण सखा अर्जुन
दोनोॅ छै मंगलकारी
कर्म भाव के त्यागि
कर्म करना समझोॅ हितकारी
कर्म करोॅ लेकिन नै कर्ता-भाव हृदय में लावोॅ
नै कर्मो में आसक्ति राखोॅ नै कर्म दुरावोॅ।
हे अर्जुन जे पुरुष
केकरो से नै द्वेष करै छै
कोय अपेक्षा कभी
केकरो से नै पालि धरै छै
वहै कर्मयोगी संन्यासी छिक, सब द्वंद्व भुलावोॅ
नै कमोॅ में आसक्ति राखोॅ नै कर्म दुरावोॅ।