भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीत 3 / नौवाँ अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पूर्ण जगत हमरा में जानोॅ
जैसे जल से बरफ पूर्ण छै, वैसी ना पहचानोॅ।

जैसे कि आकाश तत्त्व में वायु-अनल-जल वासै
जैसे सब आभूषण अन्दर एक्के स्वर्ण प्रकाशै
मूल तत्त्व मिट्टी बर्तन के, मिट्टी छिक हय मानोॅ
पूर्ण जगत हमरा में जानोॅ।

जैसें कि सम्पूर्ण गगन में बादल व्याप्त रहै छै
बादल के छटला के बादो पूर्ण अकाश रहै छै
वैसें जग नशला पर भी अविनाशी हमरा मानोॅ
पूर्ण जगत हमरा में जानोॅ।

जैसे उपजै स्वप्न, जगै तब सब टा वस्तु नसावै
जे जगला पर रहै वस्तु, सब वहेॅ नजर पर आवै
स्वप्न के द्रष्टा, कभी स्वप्न से करै मोह नै, मानोॅ
पूर्ण जगत हमरा में जानोॅ।