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गुड़िया-6 / नीरज दइया

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चेहरे पर नहीं
दुख है भीतर विशाल
तुम्हें ब्याह के
छोड़ दिया उसने
रोती भी नहीं
गुड़िया हो तुम !

भीतर से गीली हो
फिर क्यों हो
बाहर एकदम सूखी ?