भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गुण-शील-रूप-व्रत एक, राम-प्रतिछवि ललाम / द्वितीय खंड / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:03, 15 जुलाई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=अहल्या / गुलाब खंडेलवाल }…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

  . . .

गुण-शील-रूप-व्रत एक, राम-प्रतिछवि ललाम
लघु भ्राता-सँग आ गए भरत ज्यों फिरे राम
हँस बोले, 'प्रभु त्रिभुवन-नायक से बचे वाम
सुर, असुर, नाग, नर, ऐसा कहीं न शक्ति-धाम
जननी! मत तनिक बिचारें'
कौसल्या ने पुलकित प्राणों से लिया लगा
आनन युग सुत का निश्छल! पावन, स्नेहरँगा
बोली गदगद्, 'प्रिय तुमसे बढ़कर पुत्र सगा!
रहता तुममें ही राम-लखन का हृदय टँगा
तुम कभी न उनसे न्यारे'
. . .