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रंक से राव बने पल में, गुणगान यहि विधि से कोउ गाता ।
शिवदीन निरंतर ध्यान लगा, गुरु गोविन्द के सम कौन है दाता ।
 
शत-शत बार प्रणाम करूँ, गुरु दीन जनों के हो भाग्य विधाता ।
पापिन के उद्धारक हो तुम, ज्ञान समुन्दर ज्ञान के दाता
हे गुरुदेव दयामय प्रेम दे, प्यार अनुपम आपसे पाता ।
शिवदीन निरंतर ध्यान लगा, गुरु गोविन्द के सम कौन है दाता ।
 
शेष महेश गणेश थके वह धन्य दिनेश थके थकि जाता ।
सारद बीन बजाय थके ऋषि नारद इन्द्र अमि बरसाता ।
बलिहारी गुरु गुन गाय़ रहे नर नाग कवि कोउ पार न पाता ।
शिवदीन निरंतर ध्यान लगा , गुरु गोविन्द के सम कौन है दाता
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