भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गुरू हो, गेलों चारो धाम / रामधारी सिंह 'काव्यतीर्थ'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गुरू हो, गेलों चारो धाम हरिनाम जानेॅ जी।
धाम गेलों, दंडवत कइलों, दान देलों जी।
ओम बोलोॅ, हरि बोलो, शिव बोलोॅ जी।
यहेॅ नाम जपोॅ तोहें मुक्ति मिल्तहौं जी।
ई नाम सुनी हमरा शंका भेलै जी।
गूंगा कैसें कहतै ओम शिव हरि जी।
वहाँ से निराश हम्में हो गेलियै जी।
सत्संग सुनेॅ हम्में गेलियै आरो गुरू जी।
वहूँ नाम नहियें भेटलै जे गूंगा बोलेॅ जी।
तोरोॅ नाम सुनी हम्में शरण अइलों जी।
पैलों नाम, सफल होलोॅ जीवन हमरोॅ जी।
शरण गहोॅ ‘सतपाल’ जी के भवरोग छुटत्हौं जी।