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"गुल हो समर हो शाख़ हो किस पर नहीं गया / हस्तीमल 'हस्ती'" के अवतरणों में अंतर
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रस्ते की धूप-छाँव का मंज़र नहीं गया | रस्ते की धूप-छाँव का मंज़र नहीं गया | ||
− | हम भी | + | हम भी मक़ाम छोड़ के इज़्ज़त गँवाएँ क्यूँ |
नदियों के पास कोई समन्दर नहीं गया | नदियों के पास कोई समन्दर नहीं गया | ||
17:31, 18 जून 2020 के समय का अवतरण
गुल हो समर हो शाख़ हो किस पर नहीं गया
ख़ुशबू पे लेकिन एक भी पत्थर नहीं गया
सारा सफ़र तमाम हुआ ज़हन से मगर
रस्ते की धूप-छाँव का मंज़र नहीं गया
हम भी मक़ाम छोड़ के इज़्ज़त गँवाएँ क्यूँ
नदियों के पास कोई समन्दर नहीं गया
बादल समन्दरों पे बरस कर चले गये
सहरा की प्यास कोई बुझा कर नहीं गया
इक बार जिसने देख ली महबूब की गली
फिर लौट के वो शख़्स कभी घर नहीं गया