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गोह की कविता / अनुज लुगुन

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एक

इसका नाम तोरो:द भी है
शायद तुम इस नाम को नहीं जानते
मुण्डा ऐसे ही कहते हैं
गोह को अपनी भाषा में

ऐसी ही कई भाषाएँ हैं
जिसमें गोह को कहा जाता है
इस तरह तुम कह सकते हो
गोह एक नहीं है
कई गोह हैं तुम्हारे ही आसपास
लेकिन तुम कहते हो
गोह विलुप्त हो रहे हैं

मुझे तुमसे इतना ही कहना है कि
भाषाएँ यूँ ही नहीं मरती
एक गोह मरता है
और एक भाषा मर जाती है ।

दो

पुराने समय में जिनके राजा थे
उनकी प्रजा कहती है गोह की कथा
वे कहते हैं गोह दीवार से चिपक जाता है
और उसकी पूँछ पकड़ कर
उसके सैनिक किला भेद लेते थे

पुराने समय की बात
आज भी सच है
गोह अब भी अपनी ताक़त में पहले जैसे ही हैं
उसी की पूँछ पकड़कर
होता है हमेशा तख़्तापलट

सवाल यह है कि तुम किला भेदना चाहते हो या नहीं
किले तो अब भी हैं और गोह भी।

तीन

एक गाँव का नाम है गोह
यह बिहार में है
अस्सी के दशक में जाओ उस गाँव में
या नब्बे के दशक में
या आजादी के बाद किसी भी तारीख़ में
तुम्हें दिखाई देंगी उजड़ी हुईं झोपड़ियाँ
बिखरे हुए खेत
सड़कों पर चलते हुए मजदूर
जूतों में कील ठोंकते मोची
या ऐसे ही कई कारीगरों को देख सकते हो
स्त्रियों के सिर से सरक रहे आँचल को देख कर
तुम कह सकते हो
गोह महज एक गाँव का नाम नहीं
यह एक समाज है
जिसका टोटेम गोह है
और गोह सदियों से उनकी स्मृतियों में हैं
यानी कि वे अपना इतिहास जानते हैं
अपने पूर्वजों को पहचानते हैं
और ये कभी भी अपनी ऊँची आवाज़ में
बोल सकते हैं लाल सलाम का नारा ।

चार

तुम बहुत रोमानियत महसूस करते होंगे
एक गोह को देखकर
गूगल तुम्हें बहत सहजता के साथ
दिखा देता है गोह की तस्वीर

लेकिन क्या तुमने सचमुच गोह देखा है ?

शायद तुमने गोह नहीं देखा है
वह रेंगता हुआ निकलता है अपनी बाँबी से
बहुत आरामतलब है वह
अपने खाने भर का जुटाता है
उसके यहाँ फ़्रिज नहीं होता है
न ही उसे अपने चलने को लेकर फ़िक्र होती है
और इसलिए उसे कभी मेट्रो की ज़रूरत ही नहीं पड़ी
सोचो कितना हँसता होगा वह मेट्रो को देख कर
ज़रूर वह सोचता होगा कि
इनसान रेंगने से ज्यादा आगे बढ़ ही नहीं सके
और बढ़े भी तो लौटे गुफ़ा की ही तरफ़
तुमने सचमुच गोह नहीं देखा
वह तो तुम पर हँसता है |

पाँच

तुम कहते हो
गोह तो गिरगिट प्रजाति के जीव हैं
जीव-विज्ञानियों से पूछो
तो वे तुमको यही जवाब देंगे

लेकिन तुम शायद नहीं जानते
कि गोह रंग नहीं बदलते गिरगिटों की तरह
तुम नाहक गोह को बदनाम करते हो
यह तुम्हारी ग़लती नहीं है
और न ही जीव-विज्ञानियों की
यह तुम्हारे अभ्यास का हिस्सा बन गया है
चुनाव के दिनों में वोट डालते-डालते |