भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKCatGhazal}}
<poem>
घुटन है, घटा क्यों बरसती नहीं है?
सुकूं आशना कोई हस्ती नहीं है।
ये क्या हो रहा है हुकूमत को अपनी?
शिकंजा युवाओं पे कसती नहीं है।
नई नस्ल तय ख़ुद करे अपनी राहें,
बुज़ुर्गों की अब सरपरस्ती नहीं है।
जहाँ पर हक़ीक़त की हो हुक्मरानी,
ज़मीं पर कोई ऐसी बस्ती नहीं है।
अजब दौर मँहगाई का कार फ़रमा,
कोई चीज़ भी अब तो सस्ती नहीं है।
नज़र लग गई है ज़माने की कैसी?
वो पहले-सी बच्चों में मस्ती नहीं है
बहुत कुछ दिया ‘नूर’ ने ज़िन्दगी को
किसी शय को अब ये तरसती नहीं है।
</poem>