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चंदन होही / ध्रुव कुमार वर्मा
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महिनत के अभिनंदन होही,
माटी हा तब चंदन होही।
संगवारी संग प्रीत बाढ़ही
गोरी हाथ मं कंगन होही।
जेकर घर मं सुन्ता रइही
सुख के गौरी-नंदन होही।
पत्रा देखे बर नई लागय
मन के जब गठबंधन होही।
लइकोरी के लइका रोथे
थोरको कहूं मंझन होही।
आंखी हा तब छूरी बनही
कोर म ओकर अंजन होही।