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श्री [[रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु']] और डॉ [[भावना कुँअर]] के संपादन में अयन प्रकाशन से चंदन मन शीर्षक से प्रकाशित [[हाइकु]] संकलन चन्दनमन’ में अठारह हाइकुकारों के हाइकु संकलित हैं।
हाइकु विशेषज्ञों द्वारा हाइकु काव्य के लिए 5+7+5=17 अक्षर और कभी वर्ण की दर्ज़नों परिभाषाएँ दी गई हैं-* ‘वह क्षण काव्य है’,* ‘शाश्वत सत्य बात की ओर संकेत करता जाती है। यहाँ यह समझ लेना ज़रूरी है कि ‘अक्षर’ को आम बोलचाल के रूप में न लिया जाए ।‘अक्षर’ का तकनीकी और भाषावैज्ञानिक अर्थ है-वह ध्वनि या ध्वनियाँ जो साँस के एक स्फोट में उच्चरित होती हैं।जब हम तकनीक की बात करें ,* ’ सतरह अक्षरी स्वयं तो ‘अक्षर’ को वर्ण का पर्याय नहीं माना जा सकता।हाइकु छन्द में पूर्ण छविचित्र है’वर्ण से आशय है-स्वर और स्वरयुक्त व्यंजन न कि हल् (स्वर रहित व्यंजन)। ‘जानता’ शब्द में दो अक्षर हैं-‘जान्’ और ‘ता’ ,* ’सद्य पभावी है’तीन स्वरयुक्त वर्ण हैं-जा, * ‘एक श्वासी काव्य है’,* ’लघुता में सत्य न और ता; अतः हाइकु के छन्द की प्रतीति कराता है’ आदि-आदि। शास्त्रीय बात करते समय इसे ज़रूर ध्यान में रखा जाए ।[[ रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]]
सम्पादक द्वय ने ‘मनोगत’ शीर्षक भूमिका में हाइकु के सनातन सत्य ‘क्षण की अनुभूति’ को हाइकु विधा / छन्द में विशेष महत्त्व दिया गया है।
डॉ अर्पिता अग्रवाल के अनुसार :[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु ]] के कुछ हाइकु मानवीय और प्राकृतिक प्रेम के उच्छल प्रयास हैं. -खिलखिलाए
पहाड़ी नदी जैसी
मेरी मुनिया’‘-(पृष्ठ-77)
 
तुतली बोली
आरती में किसी ने
मिसरी घोली--(पृष्ठ-77)सचमुच कानों में चाँदी की घण्टियों की मधुर ध्वनि गूँज उठती है । हिमांशु जी के हाइकुओं में प्रकृति के नाना रूपों के मनोहर चित्रों के साथ मानवीय संवेदनाओं की निश्छल , पावन अनुगूँज भी है :‘बीते बरसों/अभी तक मन में खिली सरसों’--(पृष्ठ-81)‘दर्द था मेरा मिले शब्द तुम्हारे गीत बने थे’-(पृष्ठ-83)-0-
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