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चमत्कारी सुबह यह / कुमार रवींद्र

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हाँ, चमत्कारी
सुबह यह
वर्ष की पहली किरण का मंत्र लाई

रात पिछवाड़े ढली
आगे खड़े सोनल उजाले
साँस भी तो दे रही है
नए सपनों के हवाले
धूप ने भी लो
सुनहले
कामवाली मखमली
जाजम बिछाई

वक़्त ने ली एक करवट और
मौसम हुआ कोंपल
उधर दिन संतूर की धुन
इधर वंशी झील का जल
और चिड़ियों की
चहक ने
चीड़वन की छाँव में
नौबत बिठाई

काश ! यह सपना हमारा
हो सभी का -
दिन धुले हों
आँख जलसाघर बने
हर ओर दरवाज़े खुले हों
आरती की धुन
नमाज़ी की पुकारें साथ दोनों
दें सुनाई