भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चमने-ख़ार-ख़ार है दुनिया / इक़बाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


चमने-ख़ार-ख़ार है दुनिया
ख़ूने-सद नौबहार है दुनिया

जान लेती है जुस्तजू <ref>चाहत</ref> इसकी
दौलते-ज़ेरे-मार <ref>गड़ा हुआ धन जिसके ऊपर साँप कुंडली मार कर बैठा हो</ref>है दुनिया

ज़िन्दगी नाम रख दिया किसने
मौत का इंतज़ार है दुनिया

ख़ून रोता है शौक़ मंज़िल का
रहज़ने-रहगुज़ार <ref>रास्ते में लूट लेने वाली</ref> है दुनिया



 

शब्दार्थ
<references/>