भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चलता है साथ-साथ कोई यों तो राह में / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


चलता है साथ-साथ कोई यों तो राह में
बेगानापन भी कुछ है मगर उस निगाह में

वह जानते हमीं हैं जो खाई है हमने चोट
एक बेरहम को अपना बनाने की चाह में

आयी न हो हमारी कहीं, रात, उनको याद
शबनम के भी निशान हैं फूलों की राह में

नश्तर चुभा के दिल के वे होते गए करीब
कहते गए हम 'और' 'और' 'आह' 'आह' में

दम भर भी बाग़ में न रहे चैन से गुलाब
काँटें बिछे थे प्यार के आँचल की छाँह में