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"चले भी आइये क्यारी में सौ गुलाब खिले / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
 
|संग्रह= सौ गुलाब खिले / गुलाब खंडेलवाल
 
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चले भी आइये क्यारी में सौ गुलाब खिले
 
हमारे मन की अटारी में सौ गुलाब खिले
 
 
कभी तो आपकी हम पर रही दया की नज़र!
 
कभी तो प्यार की क्यारी में सौ गुलाब खिले!
 
 
कभी बहार के पाँवों की तो आहट न मिली
 
भले ही मन की खुमारी में सौ गुलाब खिले
 
 
खड़े हुए थे अँधेरे तो दोनों ओर मगर
 
किरन-किरन की सवारी में सौ गुलाब खिले
 
 
जहां था प्यार नज़रबंद आँसुओं से कभी
 
उसी चहारदीवारी में सौ गुलाब खिले
 
 
जतन से ओढ़ के चादर तो ज्यों-की-त्यों धर दी
 
मगर कहीं थे किनारी में सौ गुलाब खिले
 
 
<poem>
 

01:56, 7 जुलाई 2011 के समय का अवतरण