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चाँदनी / कानेको मिसुजु / तोमोको किकुची

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चाँदनी छत की ओर से झाँक रही,
जगमग शहर को ।

पर लोगों को उसकी परवाह नहीं ।
दिन की तरह आनन्दित
जगमग शहर में घूम रहे ।

चाँदनी वह सब देखकर
धीमे-धीमे साँस छोड़ती है
और ऐसी बहुत सारी छायाएँ
खपरैल पर फेंकती है,
जिनको लेनेवाला कोई नहीं ।

पर लोगों को उस सबकी परवाह नहीं ।
वे आलोकित नदी जैसी सड़कों पर
मछली की तरह चलते रहे
घसीटते हुए बिजली की बत्तियों की छाया —
क़दम - क़दम पर,
कभी गहरी, कभी हलकी,
कभी लम्बी, कभी छोटी होती छाया को ।
मनमानी छाया को ।

चाँदनी की दृष्टि बिछल जाती
अँधेरी सुनसान गली - मुहल्ले की ओर ।
तुरन्त कूद पड़ती वह वहाँ,
एक अनाथ बच्चा खड़ा होता जहाँ ।

सहसा उस बच्चे की आँखें,
चौंककर खुल - फैल जातीं,
चाँदनी उन आँखों के भीतर भी,
चली जाती आहिस्ते - आहिस्ते
कि बच्चे को ज़रा - सा भी दर्द न हो,
और इधर - उधर की झुग्गी - झोंपड़ी
चाँदी के महल की तरह नज़र आए ।

बच्चे के सो जाने पर भी,
जब तक भोर में ऊषा नहीं फूटती,
चाँदनी शान्ति से वहाँ ठहरती —
ठेला गाड़ी, फटे छाते,
तन्हा उगी घास को भी,
बराबर छाया देती हुई ।

मूल जापानी से अनुवाद : तोमोको किकुची