भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"चाँद को बड़का कटोरा में यहाँ हम लायेंगे / अवधेश्वर प्रसाद सिंह" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवधेश्वर प्रसाद सिंह |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

20:54, 19 दिसम्बर 2019 के समय का अवतरण

चाँद को बड़का कटोरा में यहाँ हम लायेंगे।
चाँदनी संग बैठकर छोला भटोरा खायंेगे।।

चाँदनी की रोशनी में देश को नहलाएँगे।
देख कर दुश्मन जलेगे विश्व को ललचाएँगे।।

बालपन में दूर रहकर ये हमें रुलवाया था।
घर बुलाकर हम इसे मम्मी से अब मिलवाएँगे।।

आसमां से चाँदनी जब से उतरकर आई है।
ये सितारे खुद ब खुद भू पर उतर कर आयेंगे।।

इक कदम हम दूर हैं उसके घर दहलीज से।
हार को फिर जीतकर दुनिया को अब दिखलाएँगे।।