भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चिंतामणि-1 / हरिओम राजोरिया

Kavita Kosh से
Bharatbhooshan.tiwari (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:06, 29 मार्च 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिओम राजोरिया |संग्रह= }} <Poem> होनी को कौन टाल पाय...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


होनी को कौन टाल पाया है
काल भी कैसा निष्ठुर है
काल के गाल में समा गये चिन्तामणि
मौत के आगे बौने हुए चिन्तामणि
इतना ही लिखा था
जितना जिये चिन्तामणि

क्या करते थे चिन्तामणि ?
चिन्तामणि चिन्ता करते थे
बहुत अच्छा बोलते थे चिन्तामणि
हरदम बात करते जनहित की
कहते, ‘‘विकास की गंगा बहा देंगे,
सड़क देंगे, पुल देंगे, बड़े-बड़े भवन देंगे,’’
उद्घाटनप्रिय थे चिन्तामणि
जन-जन के प्रिय थे चिन्तामणि

चिन्तामणि चले गये
अगर जीते तो पता नहीं क्या होते
मौत भी तमाशा हुई
आयी जब स्क्रीन पर

कितने ब्रेक लगे
कैसा रुक-रुककर मरे
कितना पीटा गया मृत्यु का समाचार
ईश्वर, सबको ऐसी मौत दे
ईश्वर, चिन्तामणि की आत्मा को शान्ति मिले।