भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चिट्ठी ना कोई सन्देस / आनंद बख़्शी

Kavita Kosh से
Jangveer Singh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:41, 2 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आनंद बख़्शी }} {{KKCatGeet}} <poem> चिट्ठी ना क...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
चिट्ठी ना कोई सन्देस, जाने वो कौन सा देस, जहाँ तुम चले गए
इस दिल पे लगा के ठेस, जाने वो कोन सा देस, जहाँ तुम चले गए

इक आह भरी होगी, हमने ना सुनी होगी
जाते जाते तुमने, आवाज़ तो दी होगी
हर वक़्त यही हैं ग़म
उस वक़्त कहाँ थे हम
कहाँ तुम चले गए

हर चीज़ पे अश्कों से, लिखा है तुम्हारा नाम
ये रस्ते घर गलियां, तुम्हें कर ना सके सलाम
हाय दिल में रह गयी बात
जल्दी से छुड़ा कर हाथ
कहाँ तुम चले गए

अब यादों के काँटे, इस दिल में चुभते हैं
ना दर्द ठहरता है, ना आँसू रूकते हैं
तुम्हें ढूँढ रहा है प्यार
हम कैसे करें इक़रार
के हाँ तुम चले गए