"चित्रकला का एक पाठ / निज़ार क़ब्बानी / श्रीविलास सिंह" के अवतरणों में अंतर
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− | मेरा बेटा रख देता है अपना | + | मेरा बेटा रख देता है अपना पेण्ट-बॉक्स मेरे सामने |
और कहता है मुझे बनाने को एक चिड़िया का चित्र उसके लिए | और कहता है मुझे बनाने को एक चिड़िया का चित्र उसके लिए | ||
मैं डुबोता हूँ ब्रश भूरे रंग में | मैं डुबोता हूँ ब्रश भूरे रंग में | ||
मैं बनाता हूँ एक चतुर्भुज जिसमें हैं सलाखें और ताले | मैं बनाता हूँ एक चतुर्भुज जिसमें हैं सलाखें और ताले | ||
− | विस्मय से भर जाती हैं उसकी आँखें | + | विस्मय से भर जाती हैं उसकी आँखें — |
− | ' | + | 'अरे, यह तो जेल है, पापा |
− | क्या नहीं जानते आप कैसे | + | क्या नहीं जानते आप कैसे बनाते हैं चिड़िया ?' |
− | और मैं कहता हूँ उससे | + | और मैं कहता हूँ उससे — ’बेटा ! क्षमा करना मुझे |
− | मैं भूल चुका हूँ चिड़ियों का | + | मैं भूल चुका हूँ चिड़ियों का आकार।’ |
मेरा बेटा रख देता है मेरे सामने चित्रकला की किताब | मेरा बेटा रख देता है मेरे सामने चित्रकला की किताब | ||
और कहता है मुझसे बनाने को गेहूँ की बालियाँ | और कहता है मुझसे बनाने को गेहूँ की बालियाँ | ||
मैं उठाता हूँ क़लम और | मैं उठाता हूँ क़लम और | ||
− | बनाता हूँ चित्र | + | बनाता हूँ चित्र बन्दूक का |
− | मेरा बेटा मेरी अज्ञानता का | + | मेरा बेटा मेरी अज्ञानता का उड़ाता है मज़ाक |
पूछता है | पूछता है | ||
− | 'पापा, तुम नहीं जानते | + | 'पापा, तुम नहीं जानते अन्तर बन्दूक और गेहूँ की बालियों में ?' |
− | कहा मैंने उससे 'पुत्र' | + | कहा मैंने उससे — 'पुत्र' |
एक समय मैं भी जानता था आकार गेहूँ की बालियों का | एक समय मैं भी जानता था आकार गेहूँ की बालियों का | ||
आकार रोटियों का | आकार रोटियों का | ||
आकार गुलाब का | आकार गुलाब का | ||
− | + | किन्तु इस कठोर हो गए समय में | |
− | जंगल के वृक्ष मिल गए हैं सैनिक | + | जंगल के वृक्ष मिल गए हैं सैनिक लड़ाकों से |
और गुलाब के मुखड़े पर है उदासी की थकान | और गुलाब के मुखड़े पर है उदासी की थकान | ||
− | + | हथियारबन्द गेहूँ की बालियों | |
− | + | हथियारबन्द चिड़ियों | |
− | + | हथियारबन्द संस्कृति | |
− | और | + | और हथियारबन्द धर्म के इस समय में |
तुम ख़रीद नहीं सकते रोटियाँ | तुम ख़रीद नहीं सकते रोटियाँ | ||
− | बिना पाए एक | + | बिना पाए एक बन्दूक उनके भीतर |
− | + | सम्भव नहीं तुम तोड़ पाओ एक गुलाब | |
बिना इस बात के कि वह काँटे न तान दे तुम्हारे सामने | बिना इस बात के कि वह काँटे न तान दे तुम्हारे सामने | ||
ख़रीद नहीं सकते तुम एक ऐसी किताब | ख़रीद नहीं सकते तुम एक ऐसी किताब | ||
− | जिसमें हो न | + | जिसमें हो न जाए विस्फोट तुम्हारी उँगलियों के मध्य । |
मेरा बेटा बैठा है मेरे बिस्तर के किनारे | मेरा बेटा बैठा है मेरे बिस्तर के किनारे | ||
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एक आँसू टपकता है मेरी आँख से तकिये पर | एक आँसू टपकता है मेरी आँख से तकिये पर | ||
बेटा समेट लेता है उसे विस्मय से, कहता है | बेटा समेट लेता है उसे विस्मय से, कहता है | ||
− | ' | + | 'किन्तु यह तो एक आँसू है, पापा, कविता नहीं' |
और मैं कहता हूँ उससे | और मैं कहता हूँ उससे | ||
जब तुम हो जाओगे बड़े, मेरे पुत्र | जब तुम हो जाओगे बड़े, मेरे पुत्र | ||
− | और | + | और पढ़ोगे अरबी कविता के दीवान |
तब तुम जान जाओगे कि होते है जुड़वाँ 'शब्द' और 'आँसू' | तब तुम जान जाओगे कि होते है जुड़वाँ 'शब्द' और 'आँसू' | ||
और अरबी कविता नहीं है कुछ और | और अरबी कविता नहीं है कुछ और | ||
− | लिखती हुई | + | लिखती हुई उँगलियों की आँखों के आँसुओ के अतिरिक्त । |
− | मेरा बेटा रख देता है अपनी | + | मेरा बेटा रख देता है अपनी क़लमें नीचे, अपने क्रेयांश का बॉक्स मेरे सामने |
और कहता है मुझसे बनाने को एक देश अपने लिए | और कहता है मुझसे बनाने को एक देश अपने लिए | ||
− | ब्रश | + | ब्रश काँपता है मेरे हाथों में |
− | और मैं टूट जाता हूँ, रोता | + | और मैं टूट जाता हूँ, रोता हुआ । |
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19:35, 14 अप्रैल 2021 के समय का अवतरण
मेरा बेटा रख देता है अपना पेण्ट-बॉक्स मेरे सामने
और कहता है मुझे बनाने को एक चिड़िया का चित्र उसके लिए
मैं डुबोता हूँ ब्रश भूरे रंग में
मैं बनाता हूँ एक चतुर्भुज जिसमें हैं सलाखें और ताले
विस्मय से भर जाती हैं उसकी आँखें —
'अरे, यह तो जेल है, पापा
क्या नहीं जानते आप कैसे बनाते हैं चिड़िया ?'
और मैं कहता हूँ उससे — ’बेटा ! क्षमा करना मुझे
मैं भूल चुका हूँ चिड़ियों का आकार।’
मेरा बेटा रख देता है मेरे सामने चित्रकला की किताब
और कहता है मुझसे बनाने को गेहूँ की बालियाँ
मैं उठाता हूँ क़लम और
बनाता हूँ चित्र बन्दूक का
मेरा बेटा मेरी अज्ञानता का उड़ाता है मज़ाक
पूछता है
'पापा, तुम नहीं जानते अन्तर बन्दूक और गेहूँ की बालियों में ?'
कहा मैंने उससे — 'पुत्र'
एक समय मैं भी जानता था आकार गेहूँ की बालियों का
आकार रोटियों का
आकार गुलाब का
किन्तु इस कठोर हो गए समय में
जंगल के वृक्ष मिल गए हैं सैनिक लड़ाकों से
और गुलाब के मुखड़े पर है उदासी की थकान
हथियारबन्द गेहूँ की बालियों
हथियारबन्द चिड़ियों
हथियारबन्द संस्कृति
और हथियारबन्द धर्म के इस समय में
तुम ख़रीद नहीं सकते रोटियाँ
बिना पाए एक बन्दूक उनके भीतर
सम्भव नहीं तुम तोड़ पाओ एक गुलाब
बिना इस बात के कि वह काँटे न तान दे तुम्हारे सामने
ख़रीद नहीं सकते तुम एक ऐसी किताब
जिसमें हो न जाए विस्फोट तुम्हारी उँगलियों के मध्य ।
मेरा बेटा बैठा है मेरे बिस्तर के किनारे
और कहता है मुझसे सुनाने को एक कविता
एक आँसू टपकता है मेरी आँख से तकिये पर
बेटा समेट लेता है उसे विस्मय से, कहता है
'किन्तु यह तो एक आँसू है, पापा, कविता नहीं'
और मैं कहता हूँ उससे
जब तुम हो जाओगे बड़े, मेरे पुत्र
और पढ़ोगे अरबी कविता के दीवान
तब तुम जान जाओगे कि होते है जुड़वाँ 'शब्द' और 'आँसू'
और अरबी कविता नहीं है कुछ और
लिखती हुई उँगलियों की आँखों के आँसुओ के अतिरिक्त ।
मेरा बेटा रख देता है अपनी क़लमें नीचे, अपने क्रेयांश का बॉक्स मेरे सामने
और कहता है मुझसे बनाने को एक देश अपने लिए
ब्रश काँपता है मेरे हाथों में
और मैं टूट जाता हूँ, रोता हुआ ।