भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"चीज़ें बोलती हैं। / कुँअर बेचैन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुँअर बेचैन }} अगर तुम एक पल भी ध्यान देकर सुन सको तो, त...)
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
पंक्ति 56: पंक्ति 55:
  
 
कि वे मधु घोलती हैं।
 
कि वे मधु घोलती हैं।
 
'''''-- यह कविता [[Dr.Bhawna Kunwar]] द्वारा कविता कोश में डाली गयी है।<br><br>'''''
 

18:15, 7 अक्टूबर 2008 के समय का अवतरण

अगर तुम एक पल भी

ध्यान देकर सुन सको तो,

तुम्हें मालूम यह होगा

कि चीजें बोलती हैं।


तुम्हारे कक्ष की तस्वीर

तुमसे कह रही है

बहुत दिन हो गए तुमने मुझे देखा नहीं है

तुम्हारे द्वार पर यूँ ही पड़े

मासूम ख़त पर

तुम्हारे चुंबनों की एक भी रेखा नहीं है


अगर तुम बंद पलकों में

सपन कुछ बुन सको तो

तुम्हें मालूम यह होगा

कि वे दृग खोलती हैं।


वो रामायण

कि जिसकी ज़िल्द पर जाले पुरे हैं

तुम्हें ममता-भरे स्वर में अभी भी टेरती है।

वो खूँटी पर टँगे

जर्जर पुराने कोट की छवि

तुम्हें अब भी बड़ी मीठी नज़र से हेरती है।


अगर तुम भाव की कलियाँ

हृदय से चुन सको तो

तुम्हें मालूम यह होगा

कि वे मधु घोलती हैं।