भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चुप्पी / जया जादवानी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:52, 19 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= जया जादवानी |संग्रह=उठाता है कोई एक मुट्ठी ऐश्व…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चप्पी कब रोती है
पता ही नहीं चलता
चुपचाप गीली होती दीवारें
अन्दर ही अन्दर
ढह जाती भरभराकर अचानक किसी रात
सुबह मलबे के ढेर पर
अकेली खड़ी मिलती वह
घायल शेर सी तान कर जिस्म
अगली छ्लांग को आतुर।