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चूड़ी / सुप्रिया सिंह 'वीणा'

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जादू-हया-सितम छै कटार ई चूड़ी।
नारी सिंगार जीवनसार प्यार ई चूड़ी।

सजै बेटी हाथ नेह आरो लार ई चूड़ी।
बहू हाथोॅ में छै पूरे घर के भार ई चूड़ी।
दुल्हन के हाथ नाज-नखरेदार ई चूड़ी।
माय हाथोॅ में सजै तेॅ छै दुलार ई चूड़ी।

छै सेवा-त्याग-ममता के आधार ई चूड़ी।
क्रूर आँखो लेॅ बनै खुल्ला तलवार ई चूड़ी।
खाली घरोॅ के छेकै सच्चे सम्हार ई चूड़ी।
करै देशोॅ के रक्षा आरो तियाग ई चूड़ी।

जाय चाँद पर खिचै बड़ोॅ लकीर ई चूड़ी।
हर रूप, हर रंग, वेश रोॅ निखार ई चूड़ी।
धरती सें धैर्य लै केॅ होलै साकार ई चूड़ी।
दुनिया-जहान घूमी रूप के विस्तार ई चूड़ी।

बनी आग, ताप हरै, दानव के संहार ई चूड़ी।
पानी बनी केॅ मिलै छै अमृत धार में ई चूड़ी।
छै नारी के हाथ सृष्टि के पतवार ई चूड़ी।
हर रूप में मान-सम्मान के आधार ई चूड़ी।