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चूहे चार / श्रीनाथ सिंह

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बिल के बाहर बिल्ली रानी,
बैठी बिन दाना ,बिन पानी।
::::रह रह बोले म्याऊँ म्याऊँ,::::चूहे निकलें तो मैं खाऊँ।::::दिन बीता फिर आई शाम,::::लोग लगे करने आराम।::::चूहे रहे समाए बिल में,::::जान पड़ी उनकी मुश्किल में।
बिल्ली कहती म्याऊँ म्याऊँ,
चूहे निकलें तो मैं खाऊँ।
सूझा एक उपाय उन्हें तब,
मुरदा बन करके निकले सब।
::::बाहर कर अपनी अपनी दुम,::::चारों निकले बन कर गुमसुम।::::बिल्ली ने झट पकड़ा उनको,::::लेकिन पाया अकड़ा उनको।::::बोली - मरे न खाऊँगी मैं,::::और कहीं अब जाऊँगी मैं।
चली वहाँ से गई बिलैया,
लगे खेलने चारों भैया।
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