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चेहरों की धूप आँखों की गहराई ले गया / राहत इन्दौरी

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Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:23, 15 फ़रवरी 2010 का अवतरण

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चेहरों की धूप आँखों की गहराई ले गया|
आईना सारे शहर की बीनाई ले गया|

डुबे हुये जहाज़ पे क्या तब्सरा करें,
ये हादसा तो सोच की गहराई ले गया|

हालाँकि बेज़ुबान था लेकिन अजीब था,
जो शख़्स मुझ से छीन के गोयाई ले गया|

इस वक़्त तो मैं घर से निकलने न पाऊँगा,
बस एक कमीज़ थी जो मेरा भाई ले गया|

झूठे क़सीदे लिखे गये उस की शान में,
जो मोतीयों से छीन के सच्चाई ले गया|

यादों की एक भीड़ मेरे साथ छोड़ कर,
क्या जाने वो कहाँ मेरी तन्हाई ले गया|

अब असद तुम्हारे लिये कुछ नहीं रहा,
गलियों के सारे सन्ग तो सौदाई ले गया|

अब तो ख़ुद अपनी साँसें भी लगती हैं बोझ सी,
उम्रों का देव सारी तवनाई ले गया|