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"चौपदियाँ / मुनव्वर राना" के अवतरणों में अंतर

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कहीं भी छोड़ के अपनी ज़मीं नहीं जाते
 
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हमें बुलाती है दुनिया हमीं नहीं जाते ।
 
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मुहाजरीन से अच्छे तो ये परिन्दे हैं
 
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शिकार होते हैं लेकिन कहीं नहीं जाते ।।
 
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उम्र एक तल्ख़ हक़ीकत है 'मुनव्वर' फिर भी
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जितना तुम बदले हो उतना नहीं बदला जाता ।
 
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सबके कहने से इरादा नहीं बदला जाता,
 
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हर सहेली से दुपट्टा नहीं बदला जाता ।।
 
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मियाँ ! मैं शेर हूँ, शेरों की गुर्राहट नहीं जाती,
 
मियाँ ! मैं शेर हूँ, शेरों की गुर्राहट नहीं जाती,
 
 
मैं लहज़ा नर्म भी कर लूँ तो झुँझलाहट नहीं जाती ।
 
मैं लहज़ा नर्म भी कर लूँ तो झुँझलाहट नहीं जाती ।
 
 
किसी दिन बेख़याली में कहीं सच बोल बैठा था,
 
किसी दिन बेख़याली में कहीं सच बोल बैठा था,
 
 
मैं कोशिश कर चुका हूँ मुँह की कड़वाहट नहीं जाती ।।
 
मैं कोशिश कर चुका हूँ मुँह की कड़वाहट नहीं जाती ।।
  
  
 
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मज़हबी मज़दूर सब बैठे हैं इनको काम दो ,
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इसी शहर में एक पुरानी सी इमारत और है ।
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हम ईंट-ईंट को दौलत से लाल कर देते,
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अगर ज़मीर की चिड़िया हलाल कर देते ।
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हमारी ज़िन्दगी का इस तरह हर साल कटता है
 
हमारी ज़िन्दगी का इस तरह हर साल कटता है
 
 
कभी गाड़ी पलटती है, कभी तिरपाल कटता है ।
 
कभी गाड़ी पलटती है, कभी तिरपाल कटता है ।
 
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दिखाते हैं पड़ोसी मुल्क़ आँखें, तो दिखाने दो
दिखाते हैं पड़ौसी मुल्क़ आँखें, तो दिखाने दो
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कभी बच्चों के बोसे से भी माँ का गाल कटता है ।।
 
कभी बच्चों के बोसे से भी माँ का गाल कटता है ।।
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21:15, 9 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

1
कहीं भी छोड़ के अपनी ज़मीं नहीं जाते
हमें बुलाती है दुनिया हमीं नहीं जाते ।
मुहाजरीन से अच्छे तो ये परिन्दे हैं
शिकार होते हैं लेकिन कहीं नहीं जाते ।।

2
उम्र एक तल्ख़ हक़ीकत है 'मुनव्वर' फिर भी
जितना तुम बदले हो उतना नहीं बदला जाता ।
सबके कहने से इरादा नहीं बदला जाता,
हर सहेली से दुपट्टा नहीं बदला जाता ।।

3
मियाँ ! मैं शेर हूँ, शेरों की गुर्राहट नहीं जाती,
मैं लहज़ा नर्म भी कर लूँ तो झुँझलाहट नहीं जाती ।
किसी दिन बेख़याली में कहीं सच बोल बैठा था,
मैं कोशिश कर चुका हूँ मुँह की कड़वाहट नहीं जाती ।।


4
हमारी ज़िन्दगी का इस तरह हर साल कटता है
कभी गाड़ी पलटती है, कभी तिरपाल कटता है ।
दिखाते हैं पड़ोसी मुल्क़ आँखें, तो दिखाने दो
कभी बच्चों के बोसे से भी माँ का गाल कटता है ।।