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आज कुछ ज़्यादा कड़ी है धूप ‘सज्जन’। | आज कुछ ज़्यादा कड़ी है धूप ‘सज्जन’। | ||
17:07, 24 फ़रवरी 2024 के समय का अवतरण
छाँव से सटकर खड़ी है धूप ‘सज्जन’।
शत्रु पर सबसे बड़ी है धूप ‘सज्जन’।
संगमरमर के चरण छू लौट जाती,
टीन के पीछे पड़ी है धूप ‘सज्जन’।
गर्मियों में लग रही शोला बदन जो,
सर्दियों में फुलझड़ी है धूप ‘सज्जन’।
फिर किसी मज़लूम की ये जान लेगी,
आज कुछ ज़्यादा कड़ी है धूप ‘सज्जन’।
प्यार शबनम से इसे जबसे हुआ है,
यूँ लगे मोती जड़ी है धूप ‘सज्जन’।
खोल कर सब खिड़कियाँ आने इसे दो,
शहर में बस दो घड़ी है धूप ‘सज्जन’।
जिस्म में चुभकर बना देती विटामिन,
ज्यों गुरूजी की छड़ी है धूप ‘सज्जन’।