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छिपा उर में कोई अनजान / रामकुमार वर्मा

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छिपा उर में कोई अनजान।
खोज खोज कर साँस विफल
भीतर आती जाती है,
पुतली के काले बादल में
वर्षा सुख पाती है;
एक वेदना विद्युत-सी
खिंच खिंच कर चुभ जाती है,
एक रागिनी चातक-स्वर में
सिहर सिहर गाती है।
कौन समझे-समझावे गान!
छिपा उर में कोई अनजान।