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जन्नत की तमन्ना में कोई मरता है / रतन पंडोरवी
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जन्नत की तमन्ना में कोई मरता है
दोज़ख की सज़ाओं से कोई डरता है।
बढ़ जाता है जो इन की हदों से आगे
दीदार हक़ीक़त का वही करता है।
मरने से हर इंसान को डरते देखा
हर वक़्त दुआ जीने की करते देखा।
जीना भी तो आसान नहीं है कोई
जीने के लिये मौत को मरते देखा।