भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जन हरषे रंग वृन्दावन में /शिवदीन राम जोशी

Kavita Kosh से
Kailash Pareek (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:46, 26 जनवरी 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवदीन राम जोशी | }} <poem> जन हरषे, रंग व...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जन हरषे, रंग वृन्दावन में।
बृज मण्डल में घूम घाम है, प्रेम छागया जन-जन में।
मोहन मदन गोपाल लाल संग, नांचे गावें गुवाल गाल संग,
घूमर घाले राध रानी, लाल गुलाल उडी घन में।
चंग बजनिया बाजा बाजे, जय बृजराज साज शुभ साजे,
होली का त्यौहार मनावें, रंग उडावें प्यारा बन- बन में।
कहे शिवदीन रसिक जन रसिया, संत भक्त के तू मन बसिया,
धन्य धमाल रागनी अनुपम, मुरली लहर हरि तन- तन में।
शिव ब्रह्मा सुर सकल सरावें, दर्शन के हित बृज में आवें,
नंद यसोदा करत बडाई, सुरता राची मोहन में।