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जब आग लगे... / रामधारी सिंह "दिनकर"

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सीखो नित नूतन ज्ञान,नई परिभाषाएं, जब आग लगे,गहरी समाधि में रम जाओ; या सिर के बल हो खडे परिक्रमा में घूमो। ढब और कौन हैं चतुर बुद्धि-बाजीगर के?

गांधी को उल्‍टा घिसो और जो धूल झरे, उसके प्रलेप से अपनी कुण्‍ठा के मुख पर, ऐसी नक्‍काशी गढो कि जो देखे, बोले, आखिर , बापू भी और बात क्‍या कहते थे?

डगमगा रहे हों पांव लोग जब हंसते हों, मत चिढो,ध्‍यान मत दो इन छोटी बातों पर कल्‍पना जगदगुरु की हो जिसके सिर पर, वह भला कहां तक ठोस कदम धर सकता है?

औ; गिर भी जो तुम गये किसी गहराई में, तब भी तो इतनी बात शेष रह जाएगी यह पतन नहीं, है एक देश पाताल गया, प्‍यासी धरती के लिए अमृतघट लाने को।