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"जब मैं पैदा हुआ था / मनोज श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

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आज पानी पर सिर्फ मुन्ने का हक होगा.

13:11, 6 जुलाई 2010 का अवतरण


जब मैं पैदा हुआ था

वह निहायत मनहूस दिन का
बेहद वाहियात लमहा था,
गुमसुमाता फिंजा--
सहमा-सहमा था

इस बार मां
अपनी प्रसव-पीड़ा झेलने
और मेरे पिता की राह देखने
के बीच घुटती
और सुबगती
बाल-बाल बच पाई थी,
मैं मल-मूत में सना
चींख रहा था
और वह मुझे जनते ही
काम पर चली गई थी

मेरे सनातनी घर में क्या नहीं था--
दीवारों पर टंगी तस्वीरें थीं,
परतदार जालों पर आरूढ़ मकड़े थे,
गन्हाते तोशक-तकियों में
बेशुमार घुन, दीमक, मकोड़े थे,
खटमली खाट-खमचे थे
जीवाश्म-सरीखे भाई-बहन थे
जिनके जिस्म का हर हिस्सा साबूत था,
हाथ, पैर और मुंह थे
ओठ थे-- दरकते हुए
आँखें थीं--डबडबाती हुई
और तैरती हुई टी.वी. पर

बेशक!
वह बड़ी अशुभ घड़ी थी,
कनस्तरों में कैद हवा
सड़ रही थी,
बर्तन सूखे से अकड़ रहे थे,
गगरी धूल से तृप्त हो रही थी,
चूल्हा राख की गंध भूल गया था

तभी, बिजली गुल हो गई
और टी.वी. की हड़कंप
सन्नाटे में जब्त हो गई,
जिससे मैं कईगुना अवाक रह गया,
मेरे सहोदरों का अन्त:क्रन्दन
मुझे सन्न-सुन्न कर गया,
आखिर, वे उस झुनझुने से
अपनी अकुलाहट
कब तक बहला सकते थे?

वे कुछ खारे और तरल को
कुरकुरे और चिपचिपे को
लगातार तरस रहे थे
क्योंकि उनका छीजता-सूखता कफ भी
अलोना और बेस्वाद हो चला था,
पर, वे अपनी शोखी से
बाज नहीं आ रहे थे
और भीतर ही भीतर
गलफड़े चिचोर रहे थे,
फटे होठों से जीभ नमकीन कर रहे थे
क्योंकि वे रोटी-पानी के ख्याल में
नहीं बहक पा रहे थे,
बिजली के आने तक
घड़ी की टिक-टिक सूइयों से
नहीं बहल पा रहे थे

जबकि समय वहां पालथी मार
बैठा हुआ था,
उमसी हवाएं
उलझ रही थीं,
धूल का बवंडर
दंगल मचा रहा था,
रोशनी अंधेरे कोनों से
लड़-मर रही थी

इसी बीच मेरी ओर ध्यान दिया गया
मेरी लगातार चींख से आजिज़ आकर
मेरी ठिंगनी दीदी आई थी
कटोरी-भर पानी लेकर,
पर, उफ्फ़!
उससे ताजे मूत की बू आ रही थी
सो, मैने उसे मार गिराया

मैने जानकर वह आफत मोल लिया था
मेरा वह कृतघ्न कृत्य
कुहराम का सबब बना,
जो सहोदर पानी को तड़प रहे थे
वे मुझे जान से मार्ने को जूझ रहे थे
लेकिन, दीदी दीवार बन
चिचियाती जा रही थी--
'अरे, हरामजादों!
दुध-मुंहे की जान ही ले लोगे क्या?
ठहरो, अभी अम्मा को पानी लाने दो
अम्मा पानी कमाने गई है'

तब, वे उस बोतल-भर पानी में
अपना-अपना हिस्सा लगा रहे थे
जबकि दीदी धमकाती जा रही थी
आज पानी पर सिर्फ मुन्ने का हक होगा
आज पानी पर सिर्फ मुन्ने का हक होगा.