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''तिरछा मूल''<poem>जब से मुझको तू ने छुआ है
रातें पूनम दिन गिरुआ है
हँस के तू ने देख लिया तो
जग ये सारा हँसता हुआ है ''{मासिक वर्तमान साहित्य, अगस्त 2009}''</poem>
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