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"जब हवाएं उस गली से, इस गली चलने लगी/राणा प्रताप सिंह" के अवतरणों में अंतर

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10:48, 10 फ़रवरी 2012 के समय का अवतरण

जब हवाएं उस गली से, इस गली चलने लगी
संदली खुशबू फिजाओं में यूँ ही बहने लगी

फाख्ते का एक जोड़ा, दिख गया छप्पर पे जब
हूक इक दिल में उठी और धडकनें बढ़ने लगी

जो चली अंडे संजोती चींटियों की इक लड़ी
कोई बूढी अपने टूटे बाम को तकने लगी

नीर बरसा, धान के अंकुर की बेचैनी घटी
जर्द मिटटी भी सुकूँ देकर हरी लगने लगी

उफ्क पे पहुंचा जो सूरज, इज़्तिराब-ए दिल बढ़ी
ज़िक्र जो उनका छिड़ा दुनिया भली लगने लगी

हम यहाँ हैं मुन्तजिर, वो जान कर भी बेखबर
जाने क्यों नीयत में उनकी खोट सी लगने लगी

मेरे दिल से लाख बेहतर, उनके कुरते की सिलन
जब भी टूटी वो हमेशा बैठकर सिलने लगी