भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जलते चराग़ों का / आनन्द किशोर

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:33, 17 फ़रवरी 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आनन्द किशोर |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

समझता है न कोई ग़म यहाँ जलते चरागों का
निकल जाए भले ही दम यहाँ जलते चरागों का

ये पूछो उनसे जो रहते सदा से हैं अँधेरों में
हुआ रुत्बा ज़रा क्या कम यहाँ जलते चरागों का

फ़क़त बस रात में औक़ात है इनकी, कभी दिन में
नहीं लहराएगा परचम यहाँ जलते चरागों का

जलेगा कौन ख़ातिर दूसरों के इस ज़माने में
कोई होता नहीं बाहम यहाँ जलते चरागों का

इकट्ठा करके रक्खे हैं उजाले घर में अपने पर
हुनर कब जानते हैं हम यहाँ जलते चरागों का

जियो औरों की ख़ातिर, सीख ये 'आनन्द' मिलती है
तभी तो ज़िक्र है हरदम यहाँ जलते चरागों का