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जलम मरण / कन्हैया लाल सेठिया

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नित हुवै दिनुगा
म्हारो नुंवो जलम,
करूं चीत
लारलै दिन री भूलां
किण नै कया
करड़ा सबद
किण पर करी रीस
किण री करी निन्दा
सोच‘र हुवै घणो पिसतावो
करूं विचार
कोनी करूं अबै चूक
पण खिण में
फिरज्या बारोकर परमाद
कोनी रवै याद धारणा,
मुरछीजज्या चेतना
बैठ ज्या फेर जा‘र
सुगलवाड़ै पर मन री माखी
चल्यौ जावै अकारथ
एक जलम और
पाछा गैळीजै नैण
दबोच लै फेर
आ‘र
मौत री छुट भाण नींद !