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जलियावाला बाग़-2 / अशोक तिवारी

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जलियावाला बाग़-2

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जलियावाला बाग़-2



इतिहास के पन्ने

फड़फड़ा रहे हैं.....

विस्मृतियों में खो रहा है

जलियावाला बाग़

हावी हो रहा है इतिहास पर

बाज़ारवाद का जादू

समय के बहते चले जाने पर

लगातार

आसपास की झड़ती दीवारों को

शक की नज़र देखा जाना लाजिमी है कि

दीवारों में हो रहे छेद

गुज़रे हुए समय का सच हैं

या

जनरल डायर की गोलियों के गवाह

 

कितना है दुखदाई कि

वहां काम कर रहे लोगों के सामने

इतिहास की तारीख़ी बुलंदियों के सिवा

अपने पेट और भविष्य का अक्स खड़ा है।

किस्सागोई का एक हिस्सा बन गया है अब ये

टहलुओं की पूरी जमात जुटी होती है यहां

वैसे ही

जैसे जाते हैं लोग किसी भी और पार्क में

या किसी सार्वजनिक जगह पर

खेलते हैं ताश

वक़्त कटता नहीं है जिनसे काटे से

रिश्ते निभते नहीं हैं निभाने से

  

जलियावाला बाग़

तब्दील होता जा रहा है जलियावाला पार्क में

  

आधुनिकता के गर्त में समा रही है

संघर्ष के लिए तैयार

पूरी की पूरी पीढ़ी

एक विचार ख़त्म हो रहा है

दूसरे विचार को स्थापित करने की शर्त पर

और दीवारें हैं कि

देखभर रहीं हैं ऐसा होते हुए

कल्पना के पंख

डाल रहे हैं हक़ीक़त पर पर्दा

बाज़ार में जलियावाला को बेचने के लिए

और बनाने के लिए

बाज़ार को जलियावाला

और जलियावाला को बाज़ार!



30/10/2011