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"जहाँ जाओ जुनून मिलता है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
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सिर्फ़ आँखों में खून मिलता है। | सिर्फ़ आँखों में खून मिलता है। | ||
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रात कुछ पल को मून मिलता है। | रात कुछ पल को मून मिलता है। | ||
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17:20, 24 फ़रवरी 2024 के समय का अवतरण
जहाँ जाओ जुनून मिलता है।
घर पहुँचकर सुकून मिलता है।
अब तो करती है रुत भी घोटाले,
मार्च के बाद जून मिलता है।
आज सबकी नसों में है पानी,
सिर्फ़ आँखों में खून मिलता है।
रोज़ सूरज से लड़ रहा हूँ तब,
रात कुछ पल को मून मिलता है।
कहीं भत्ता भी मिल रहा दूना,
कहीं वेतन भी न्यून मिलता है।